क्यों
भीड़ में देखे हर चेहरे उदास क्यों लगते हैं?
क्यों कुछ तन्हाई और कमियां दिल में नज़र आती हैं?
क्यों कभी-कभी रात के सुकून में भी शोर सा नज़र आता है?
और क्यों कभी दिन के शोर में सब ख़ामोश सा लगता है?
क्यों हम दूसरे शख़्स में अपनी खुशियाँ ढूंढ़ते हैं?
क्यों खुद के आँसुओं का कारण बनते हैं?
हाथों से फ़िसलते हाथों को देखकर क्यों दिल दुख सा जाता है?
क्यों जागते हैं रातों को एक शख़्स के इंतेज़ार में?
और क्यों दूसरे ही पल बिल्कुल टूट से जाते हैं?
क्यों दूसरी सुबह एक नई सी लगने लगती है?
क्यों कभी खुद की ही मंज़िल धुंधली सी मालूम पड़ती है?
क्यों हर टूटते तारों से ख़्वाहिशें पूरी होने की उम्मीद करते हैं?
क्यों ये दिल कभी बेचारा सा बन जाता है?
और क्यों ये साँसें कभी-कभी दूसरों की लगने लगती हैं?
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